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2025 में विदेशी निवेशकों की रिकॉर्ड बिकवाली, शेयर बाजार से निकाले 1.6 लाख करोड़

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Posted On:Monday, December 29, 2025

साल 2025 भारतीय शेयर बाजार के इतिहास में एक ऐसे वर्ष के रूप में दर्ज हो गया है, जिसने विदेशी निवेश के मामले में 2022 के पुराने काले रिकॉर्ड को भी पीछे छोड़ दिया। 1.6 लाख करोड़ रुपये का आउटफ्लो (निकासी) भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चेतावनी है, लेकिन इसके पीछे के कारणों को समझना और भी जरूरी है।

1. वैश्विक कारण: अमेरिका की 'मैग्नेटिक' ताकत

विदेशी निवेशकों की बेरुखी का सबसे बड़ा कारण अमेरिका की मौद्रिक नीति रही।

  • बॉन्ड यील्ड और डॉलर: अमेरिका में बॉन्ड यील्ड (प्रतिफल) का ऊंचे स्तर पर बने रहना और डॉलर का मजबूत होना विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक बन गया। जब अमेरिका जैसे सुरक्षित बाजार में बिना जोखिम के अच्छा रिटर्न मिलता है, तो निवेशक भारत जैसे उभरते बाजारों (Emerging Markets) से पैसा निकालकर वापस अपने देश ले जाते हैं।

  • ट्रेड टैरिफ और अनिश्चितता: अमेरिका द्वारा लगाए गए उच्च व्यापार शुल्क (टैरिफ) ने वैश्विक सप्लाई चेन को लेकर आशंकाएं पैदा कीं, जिससे विदेशी निवेशकों ने अपनी रिस्क क्षमता को कम कर दिया।

2. घरेलू मोर्चे पर चुनौतियां: वैल्यूएशन का दबाव

भारत के भीतर बिकवाली की एक बड़ी वजह महंगे शेयर (High Valuations) रहे। 2025 की शुरुआत में भारतीय शेयर अपनी ऐतिहासिक ऊंचाइयों पर थे। विदेशी निवेशकों ने इसे 'प्रॉफिट बुकिंग' (मुनाफावसूली) के अवसर के रूप में देखा।

  • बिकवाली का ट्रेंड: साल के 12 महीनों में से 8 महीनों में विदेशी निवेशकों ने केवल बिकवाली की। अकेले जनवरी में 78,000 करोड़ रुपये की निकासी ने बाजार की कमर तोड़ दी थी।

3. घरेलू निवेशकों का 'कवच'

2025 की सबसे सुखद बात यह रही कि इतनी बड़ी बिकवाली के बावजूद भारतीय बाजार पूरी तरह धराशायी नहीं हुआ। इसका श्रेय घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) और आम भारतीयों की SIP (सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) को जाता है।

  • म्यूचुअल फंड की ताकत: जब विदेशी निवेशक (FPI) बेच रहे थे, तब भारतीय म्यूचुअल फंड्स ने मोर्चा संभाले रखा और बाजार को गिरने से बचाया। यह दर्शाता है कि अब भारतीय बाजार विदेशी पैसों के रहम-ओ-करम पर नहीं है।

4. डेट मार्केट: एक नई उम्मीद

जहाँ विदेशी निवेशकों ने शेयरों से दूरी बनाई, वहीं डेट मार्केट (Bond Market) में उनका भरोसा बढ़ा।

  • बॉन्ड मार्केट में निवेश: विदेशी निवेशकों ने भारतीय बॉन्ड में लगभग 59,000 करोड़ रुपये लगाए। भारत का 'ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स' में शामिल होना इसकी मुख्य वजह रही। निवेशकों को लगा कि शेयर की तुलना में भारतीय सरकारी बॉन्ड लंबी अवधि के लिए अधिक सुरक्षित और फायदेमंद हैं।

2026 के लिए क्या है संकेत?

विशेषज्ञों का मानना है कि 2025 एक 'एडजस्टमेंट' का साल था। 2026 में विदेशी निवेशकों की वापसी की प्रबल संभावना है, यदि:

  1. अमेरिका में ब्याज दरें कम होना शुरू होती हैं।

  2. भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते (Trade Deal) पर स्पष्टता आती है।

  3. भारत की विकास दर (GDP Growth) 7% के ऊपर बनी रहती है।


निष्कर्ष

साल 2025 ने यह साबित कर दिया कि विदेशी निवेश की प्रकृति 'अस्थिर' हो सकती है, लेकिन घरेलू निवेश का आधार अब बहुत मजबूत हो चुका है। 1.6 लाख करोड़ रुपये की निकासी एक बड़ा झटका जरूर है, लेकिन यह भारत की लॉन्ग टर्म 'ग्रोथ स्टोरी' को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है।


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